
15 साल से मां दुर्गा की प्रतिमा बनाकर पूजा करती हैं, ट्रांसजेंडरों के मुद्दों को लेकर लगातार रहती हैं सक्रिय
संविधान में सभी वर्ग के लोगों का समान अधिकार दिया गया है, लेकिन जब समाज में समानता की बात होती है, तो जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव साफ दिखाई देता है. इसी भेदभाव का शिकार हैं ट्रांसजेंडर जिन्हें हम बोलचाल की भाषा में किन्नर कहते हैं. वे भी आम इंसान हैं, लेकिन समाज में उनके प्रति सदियों से चला आ रहा उपेक्षा की भावना ने उन्हें हाशिये पर डाल रखा है. लेकिन प्रतिभा किसी जाति, धर्म अथवा लिंग की मोहताज नहीं होती.
गोलमुरी के रहनेवाले अमरजीत ट्रांसजेंडर हैं. उनकी बनायी मूर्तियां किसी भी अच्छे मूर्तिकार से कम नहीं हैं. अमरजीत पिछले 15 वर्षों से भी ज्यादा समय से हर साल नवरात्र में पूजा के लिए मां दुर्गा की प्रतिमा बनाती हैं और पूजा करती हैं. मूर्ति कला में उनकी रुचि बचपन से ही है, लेकिन किन्नर होने के कारण कोई भी मूर्तिकार उन्हें यह कला सिखाने को राजी नहीं हुआ. किन्नर होने के चलते उन्हें हर कदम पर भेदभाव का सामना करना पड़ा. लेकिन धुन की पक्की अमरजीत ने अपने प्रयास से यह कला सीखी. अभ्यास करते-करते उनकी कला में निखार आता गया. उसके बाद से हर साल वे नवरात्र में मां दुर्गा की प्रतिमा बनाती हैं. कुछ साल पहले उन्होंने मूर्तियों को बेचने की भी कोशिश की, लेकिन समाज के ठेकेदारों ने उन्हें पैर पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया. लेकिन अमरजीत ने हार नहीं मानी है. वह दूसरे ट्रांससजेंडरों को यह कला सिखाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहती हैं.
ट्रांसजेंडरों में भी है प्रतिभा, अवसर देने की जरूरत
अमरजीत ट्रांसजेंडरों के लिए शिक्षा, रोजगार, आवास, स्वास्थ्य समेत कई मुद्दों पर काम कर रही हैं. कोरोना काल में भी इन विषयों को लेकर लगातार सक्रिय रही. न्यूज विंग से बातचीत में अमरजीत ने बताया कि ट्रांसजेंडर समुदाय के कई ऐसे लोग है, जो मूर्ति कला, योग, पेंटिंग, चित्रकारी और पढ़ाई के क्षेत्र में अच्छे हैं, लेकिन समाज के किन्नरों को लेकर बैठी मानसिकता के चलते आगे बढ़ने नहीं दिया जाता. उन्होंने कहा कि हम सभी को समाज के सहयोग की जरूरत है, ताकि हम अपनी प्रतिभा से अपनी अलग पहचान बना सकें.
समाज कब तक केवल नाचने-गाने वाला समझेगा
अमरजीत का सवाल है कि आखिर समाज हमें कब तक केवल नाचने-गाने वाला समझेगा. हर बार हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ता है. परिवार और समाज के लोग हमें नहीं अपनाते. उन्होंने झारखंड सरकार से अपील की है कि वह उनके समुदाय की आवाज सुने, ताकि ट्रांसजेंडर भी आत्मनिर्भर बनें और समाज में सम्मान के साथ जी सकें.