
- यह सवाल हर दूसरा व्यक्ति जरूर अपने लिए सोचता होगा या महसूस करता है की उसी के साथ हर बार ऐसा क्यों होता है. ऐसा क्यों होता से अर्थ है कि कुछ ऐसी घटना जो उसे परेशान करें और उसके लिए सही ना हो. दोस्तों ऐसा सोचना गलत भी नहीं है क्योंकि जीवन में ऐसे कई पल आते हैं जब व्यक्ति सारी आशाएं छोड़ देता है और केवल अपने भाग्य को कोसता है. पर क्या स्वयं को कोसने से हम इस परिस्थिति से बच सकते हैं? या ऐसा सोचने से हम खुश रह सकेंगे? या फिर ऐसा विचार हमारे जीवन में उम्मीद ला सकेगा? आइए आज हम यही सब सवालों के उत्तर जानेंगे और यकीन माने जो यह आलेख(article) पढ़ रहे हैं वह अवश्य जान सकेंगे कि क्या सच में ऐसा उन्हीं के साथ होता है? और अगर होता है तो इसका कारण कारण क्या है.
विस्तार-
दोस्तों हम इस लेख की शुरुआत एक कहानी के माध्यम से करेंगे ताकि आप अच्छे से समझ सके की असल में हमें किस विचार पर जोर देना है.
एक समय की बात है एक जंगल में बहुत सींगधारी सुंदर हिरण हुआ करता था। उस हिरणका नाम सोनपरी था ,उसकी खूबसूरती के चर्चे पूरे हिरण प्रजाति में थे क्योंकि वह था ही इतना सुंदर, चमकता हुआ सोने के रंग का उसकी चमक इतनी थी कि दूर से ही पहचाना जा सकता था। और यह बात हिरण भी बखूबी जानता था इसलिए वह अपने रंग से अत्यधिक प्रेम करता था .लेकिन उसका ऐसा मानना था कि उसके बड़े बड़े सींग उसकी खूबसूरती में दाग के समान है क्योंकि वाह काफी बड़े और नुकीले थे वह हमेशा दूसरे हिरणों से तुलना करता कि उनके इतने छोटे सींग और मेरे इतने बड़े और नुकीले सींग क्यों. वह ऊपर वाले से हमेशा यह प्रश्न मन ही मन करता कि उसे ही इतने बड़े सींग क्यों दिए. एक बार जंगल में काफी भीषण गर्मी पड़ी जिस कारण पानी की किल्लत होने लगी सारे पशु पक्षी बचे हुए तालाबों की ओर अपनी प्यास बुझाने के लिए जाने लगे. हिरणों का समूह भी तालाब की ओर बढ़ चला यह समय शेरों के लिए दावत का समय था जैसे ही कोई जानवर तालाब तरफ आता शेरों का झुंड हमला कर देता और बचकर निकलने का कोई संभावना नहीं. जब हिरणों का झुंड तालाब की तरफ आया तो शेरों ने हमला कर दिया, सारे हिरण भागने लगे. सोनपरी भी भागने लगी और जंगल झाड़ियों की तरफ दौड़ने लगी शेर भी उसका पीछा करने लगे तभी वह अंधेरे में छुप गई पर उसके सोने की तरह चमकती खाल जो कि उसे काफी सुंदर बनाती थी वही उसके विरुद्ध पड़ गई क्योंकि अंधेरे में वह अलग से चमकती हुई दिखाई पड़ रही थी इसलिए कहीं छुप भी नहीं पा रही थी शेरों ने उसको चारों तरफ से घेर लिया उसके पास बचने का कोई रास्ता नहीं बचा जैसे ही शेरों ने उस पर हमला किया सोनपरी ने भी अपने बचाव में सिर से हमला किया.उसके बड़े और नुकीले सींग शेर को जा लगे जिससे वह घायल हो गया बाकी शेरों कभी यही हश्र हुआ ,हिरण मौके का फायदा उठाते हुए वहां से भाग निकली और उसकी जान बच गई आखिर में उसने भगवान को धन्यवाद किया की उन्होंने उसे इतने दमदार सींग दिए जिस कारण वह बच सकी.
इस कहानी से हमें यह समझने सीखने को मिला कि हम केवल उन्हीं चीजों पर अपना ध्यान देते हैं जोकि हमारे लिए सही नहीं है और अपने भाग्य को इसका जिम्मेदार ठहराते हैं. पर यह भूल जाते हैं कि जीवन की हर एक घटना कुछ सीख देने के लिए बनी होती है अगर हम ध्यान से उन चीजों पर गौर करें और अच्छे और बुरे का भेद हटाकर हटाकर केवल उस घटना या चीज का भाव पता करें कि वह हमारे जीवन में किस उद्देश्य से है तो यह वाक्य “कि ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है “शायद ना बोलना पड़े.
इस विषय के दूसरे पक्ष को समझते हैं-
यह जो वाक्य है की ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है यह काफी दबे हुए विचारों को भी बतलाता है जैसे कि जिम्मेदारी और असफलता . अब चाहे वह किसी से भी जोड़ सकते हैं आजीविका के लिए कोई काम या प्रेम संबंध से जुड़ा .
असफलता और जिम्मेदारी से इसका तात्पर्य समझते हैं.जब हम छोटी आयु के थे तब कोई जिम्मेदारी का अनुभव नहीं था पर जब व्यक्ति बड़ा होता जाता है तब उसे घर -परिवार, स्वयं की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है फिर वह आजीविका के लिए कुछ नया काम ,व्यवसाय करने का सोचता है और उससे इतना अपेक्षा करने लगता है कि वह उम्मीद बांध बैठता है. और जब वह उम्मीद खरी नहीं उतरती है तब वह निराशा बन जाती है. और यही कारण बनता है कि जब यह सवाल पैदा होता है “कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों हर बार होता है”. शायद हम समझ तो जाते हैं की कारण क्या है पर एक आदत सी बना लेते हैं स्वयं को और जीवन को दोष देने की. पर हम अगर इस विफलता और जिम्मेदारी को बोझ की तरह ना देख कर चुनौती की तरह माने और एक योद्धा के जैसे अगर स्वयं को समझे तो बड़ी से बड़ी समस्या आसानी से हल हो सकती है क्योंकि एक योद्धा या तो जीतता है या सीखता है. मैं इस पंक्ति से अपनी कलम को विराम दूंगा कहते हैं कि
जिन्दगी काँटों का सफ़र हैं,
हौसला इसकी पहचान हैं,
रास्ते पर तो सभी चलते हैं,
जो रास्ते बनाये वही इंसान हैं.